Thursday, 16 February 2017

तुम्हारा सपना।।।

लोग कहते हैं मैं रातों में आता हूँ
कभी हँसाता हूँ कभी रुलाता, डराता, जगाता...
कुछेक मुझे गंभीरता से लेते हैं
बाकी भाव ही नहीं देते।
कुछ तो गाली देते हैं
तरक्की का रोड़ा बताते हैं
कई दफा तो मनहूस तक कहा जाता हूँ...

सब सोचते अपने बारे में हैं
क्या मेरा उपयोग बस रातों को आने में है।
मैं तो बस उन्हें जगाना चाहता था
उनकी आवाज उन तक पहुँचाना चाहता था...

तुम भी तो मूकदर्शी हो
तुमने भी कहाँ मुझे पहचाना
मेरा दुःख दर्द कब पहचाना....


है! मेरा भी तो एक सपना है
सपना! तुमसे होकर खुद को साकार होते देखना,
तभी तो आता हूँ,
झटके से तुम्हें जगाता हूँ,
पर तुमने भी मुझे भुला दिया है
अपनी झूठी जिंदगी के तले दबा दिया है
अब तो बस कभी कभी धुंधला सा आता हूँ
खुद को तुममे ही कहीं सिकुड़ा सा पाता हूँ
तुमसे नाराज़ हूँ
पर सच! तमसे ही तो पूरा हूँ मैं
तुम बिन अधूरा हूँ मैं......

तुम्हारा सपना।।।