Sunday, 29 January 2017

तभी तो रातें आतीं हैं...

हाँ हाँ! उस रात भी तुमने वही देखा था
जो आज,
हर रोज देखते हो,
क्योंकि रातों में हलचल नहीं होती,
चकाचौंध नहीं, भागमभाग भी नहीं....
होती है स्थिरता, तन्हाई...
रातों का अँधेरा कुछ अलग है क्योंकि इसमें तुम खुद से झूठ नहीं बोलते,
जबकि दूसरे अँधेरे में,
इसमें तुम खुद को पहचान ही नहीं पाते,
लोग दिन का उजाला कहते हैं जिसे
वही चकाचौंध, तीव्र, भागमभाग धारी...
रातों में तुम खुद से झूठ नहीं बोलते क्योंकि
रातों के पास तारे हैं
सच्चे तारे,
और तारे बड़े आकर्षक होते हैं
तुम उन्हीं में तो जीना चाहते थे,
ऐसा मैं नहीं तुम्हारा दिल कहता है
सुनो तो सही,
पर दिन के कोलाहल में तुम सुन कहाँ पाते हो...
तभी तो रातें आतीं हैं...
फिर से तारे दिखातीं हैं...
तारे! हैं न बिल्कुल वैसे ही,
जैसे 'सपने'
'तुम्हारे अपने'।।।

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