Thursday, 26 December 2013

किस्से कहें

किस्से कहें
छुपाये बैठा हूँ जो दर्द,
छुपाये कब तक रहें,
बता सारथी किस्से कहें..?

छलछला उठा है सागर का जल,
उत्तेजित होता है पल-पल,
सांत्वना लहरें भी अब चाहें.
बता सारथी किस्से कहें?

प्रज्ज्वलित हो अब अनल प्रचंड,
धकधका रहा है अनंत भूखंड,
अब तो बस मधुर एकांत की लालसा करें,
बता सारथी किस्से कहें?

ह्रदय पर रखे दरारे पाँव,
दवायें पल-पल उभरे घाव,
वज्र 'सम' विकट मृत्यू से लड़ें
बता सारथी किस्से कहें?

तुमको भूल न पायेंगे.............

सजल नेत्र हैं भरा कंठ ,
अब बढ़ते कैसे ये जीवन पल,
अस्कों का क्या वह तो बहते हैं,
पर नहीं सोख पता यह तल....

लोक जगत सब फीका लगता,
पास नहीं थे जब तुम कल,
छाँव तुम्हारी पाई जब से
बाग-बाग दिल है हर्षिल...

नीरज, पंकज, कमल,
सरोवर में खिलते ही जायेंगे.
पर एक तुम्ही हो स्वर्ण कमल 'सम'
तुमको भूल न पायेंगे.............

सारथी

रुक जा रे सारथी अब आहिस्ता तो चल,
पग पग पे बिछे ये कांटे अब आगे बढ़ने नहीं देतेे.
हम तो बढ़ते जाएँ आगे मंजिल की तलाश में,
पर एक के बाद एक ये अब संभलने ही नहीं देते.

सुख दीं हैं पवित्र नदियाँ, झड चुकीं हैं सारीं बरियाँ,
कहाँ जाएँ ये पंछी कहर अब सूर्य भी बरसाते.
व्यंग भी देखो अब इनका दिलों में आशा पहुचाएं,
लदे हैं काले सागर से फिर भी एक बूंद को तरसाते.

जिन्दगी के हैं ये सिद्धांत, इन्हें अपनाना पड़ता है,
भाग्य की रेखा में हैं वो, लोग अफ़सोस से समझाते.
भाग्य की रेखा के परितः कई मारग है इस जग में,
उन्ही मारग पर चलकर 'सम' अजब सिद्धांत भी गड़ जाते.

पर ये कब कौन समझ पता है....

जी भर के रो लेना चाहता हूँ
पर एक आँसू आँख तक आकर
लौट जाता है
पर ये कब कौन समझ पता है.......

बंद कर चुका हूँ
वह अरमानों का कारखाना
जिससे निकलने वाले धुएं से
यह तनहा दिल घबरा जाता है
पर ये कब कौन समझ पता है.......

हम तो अपनी जीत भी नहीं चाह सकते
ये दिल
हार को अपना ले समझाता है
और जीत को कोरी हार बताता है
पर ये कब कौन समझ पता है........

जल रही है सारी पृथ्वी
पर उसमे रोष कहाँ है
दर्द होता है उसे तो बस इसका
कि तपा जा रहा ये सारा जहाँ है
बादल भी उसके इस दुःख में
रोकर बारिश करता जाता है
पर ये कब कौन समझ पता है......