रुक जा रे सारथी अब आहिस्ता तो चल,
पग पग पे बिछे ये कांटे अब आगे बढ़ने नहीं देतेे.
हम तो बढ़ते जाएँ आगे मंजिल की तलाश में,
पर एक के बाद एक ये अब संभलने ही नहीं देते.
सुख दीं हैं पवित्र नदियाँ, झड चुकीं हैं सारीं बरियाँ,
कहाँ जाएँ ये पंछी कहर अब सूर्य भी बरसाते.
व्यंग भी देखो अब इनका दिलों में आशा पहुचाएं,
लदे हैं काले सागर से फिर भी एक बूंद को तरसाते.
जिन्दगी के हैं ये सिद्धांत, इन्हें अपनाना पड़ता है,
भाग्य की रेखा में हैं वो, लोग अफ़सोस से समझाते.
भाग्य की रेखा के परितः कई मारग है इस जग में,
उन्ही मारग पर चलकर 'सम' अजब सिद्धांत भी गड़ जाते.
पग पग पे बिछे ये कांटे अब आगे बढ़ने नहीं देतेे.
हम तो बढ़ते जाएँ आगे मंजिल की तलाश में,
पर एक के बाद एक ये अब संभलने ही नहीं देते.
सुख दीं हैं पवित्र नदियाँ, झड चुकीं हैं सारीं बरियाँ,
कहाँ जाएँ ये पंछी कहर अब सूर्य भी बरसाते.
व्यंग भी देखो अब इनका दिलों में आशा पहुचाएं,
लदे हैं काले सागर से फिर भी एक बूंद को तरसाते.
जिन्दगी के हैं ये सिद्धांत, इन्हें अपनाना पड़ता है,
भाग्य की रेखा में हैं वो, लोग अफ़सोस से समझाते.
भाग्य की रेखा के परितः कई मारग है इस जग में,
उन्ही मारग पर चलकर 'सम' अजब सिद्धांत भी गड़ जाते.
No comments:
Post a Comment