सजल नेत्र है भरा कंठ
अब बढते कैसे ये जीवन पल ,
अश्कों का क्या
वह तो बहते हैं
पर नहीं सोख पता यह तल|
लोक जगत सब फीका लगता
पास नहीं थे जब तुम कल,
छाँव तुम्हारी पाई जब से
बाग बाग दिल है हर्षिल|
नीरज-पंकज-कमल
सरोवर में खिलते ही जायेंगे ,
पर एक तुम्ही हो स्वर्ण कमल 'सम'
तुमको भूल न पाएंगे.....
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