सजल नेत्र हैं भरा कंठ ,
अब बढ़ते कैसे ये जीवन पल,
अस्कों का क्या वह तो बहते हैं,
पर नहीं सोख पता यह तल....
लोक जगत सब फीका लगता,
पास नहीं थे जब तुम कल,
छाँव तुम्हारी पाई जब से
बाग-बाग दिल है हर्षिल...
नीरज, पंकज, कमल,
सरोवर में खिलते ही जायेंगे.
पर एक तुम्ही हो स्वर्ण कमल 'सम'
तुमको भूल न पायेंगे.............
अब बढ़ते कैसे ये जीवन पल,
अस्कों का क्या वह तो बहते हैं,
पर नहीं सोख पता यह तल....
लोक जगत सब फीका लगता,
पास नहीं थे जब तुम कल,
छाँव तुम्हारी पाई जब से
बाग-बाग दिल है हर्षिल...
नीरज, पंकज, कमल,
सरोवर में खिलते ही जायेंगे.
पर एक तुम्ही हो स्वर्ण कमल 'सम'
तुमको भूल न पायेंगे.............
Bahut shandar...
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